Jat legend

।।इतिहास  का  एक  सत्य  ।।

जब राजस्थान के राजपूत राजाओं ने अंग्रेजों के विरोध में तलवार
नहीं उठाई तो जोधपुर के राजकवि बांकीदास से नहीं रहा गया और उन्होंने ऐसे गाया -

पूरा जोधड़, उदैपुर, जैपुर, पहूँ थारा खूटा परियाणा।

कायरता से गई आवसी नहीं बाकें आसल किया बखाणा ॥

बजियाँ भलो भरतपुर वालो, गाजै गरज धरज नभ भौम।

पैलां सिर साहब रो पडि़यो, भड उभै नह दीन्हीं भौम ॥

अर्थ है कि “है जोधपुर, उदयपुर और जयपुर के मालिको ! तुम्हारा तो वंश ही खत्म हो गया। कायरता से गई भूमि कभी वापिस नहीं आएगी, बांकीदास ने यह सच्चाई वर्णन की है। भरतपुर वाला जाट तो खूब लड़ा। तोपें गरजीं, जिनकी धूम आकाश और पृथ्वी पर छाई। अंग्रेज का सिर काट डाला, लेकिन खड़े-खड़े अपनी भूमि नहीं दी।”
अंग्रेजों ने स्वयं अपने लेखों में भरतपुर लड़ाई पर जाटों की बहादुरी पर अनेक टिप्पणियाँ लिखीं। जनरल लेक ने वेलेजली (इंग्लैंड) को 7 मार्च 1805 को पत्र लिखा “मैं चाहता हूँ कि भरतपुर का युद्ध बंद कर दिया जाये, इस युद्ध को मामूली समझने में हमने भारी भूल की है।” इस कारण भरतपुर का लोहगढ़ का किला अजयगढ़ कहलाया। उस समय कहावत चली थी लेडी अंग्रेजन रोवें कलकत्ते में क्योंकि अंग्रेज भरतपुर की लड़ाई में मर रहे थे, लेकिन उनके परिवार राजधानी कलकत्ता में रो रहे थे। इतिहास गवाह है कि जाटों ने चार महीने तक अंग्रेजों के आंसुओं का पानी कलकत्ता की हुगली नदी के पानी में मिला दिया था। स्वयं राजस्थान इतिहास के रचयिता कर्नल टाड ने लिखा - अंग्रेज लड़ाई में जाटों को कभी नहीं जीत पाए।
इस प्रकार अंग्रेजों का सूर्य जो भारत में बंगाल से उदय हो चुका था भरतपुर, आगरा व मथुरा में उदय होने के लिए चार महीने इंतजार करता रहा, फिर भी इसकी किरणें पंजाब में 41 साल बाद पहुंच पाईं। भारतवर्ष में केवल जाटों की दो रियासतों भरतपुर व धौलपुर ने कभी भी अंग्रेजों को खिराज (टैक्स) नहीं दिया। यह भी
ऐतिहासिक तथ्य है कि भरतपुर में लौहगढ़ का किला भारत में एकमात्र ऐसा गढ़ है जिसे कभी कोई दूसरा कब्जा नहीं कर पाया। इसलिए इसका नाम अजयगढ़ पड़ा। भरतपुर के महाराजा कृष्णसिंह ने भारतवर्ष में भरतपुर शहर में सबसे पहले नगरपालिका की स्थापना की थी। अंग्रेजों ने मद्रास, कलकता व बम्बई में सबसे पहले मुनिस्पल कार्पोरेशन की स्थापना की। इसी जाट राजा कृष्ण सिंह ने भरतपुर में हिन्दी साहित्य सम्मेलन करवाया सन् 1925 में राजा जी ने पुष्कर (राजस्थान) में जाट महासम्मेलन करवाया जहां चौ० छोटूराम जी भी पधारे थे। इन्होंने जनता के लिए ‘भारत वीर’ नाम का पत्र प्रकाशित करवाया था। (यह सभी तथ्य डॉ. धर्मचन्द्र विद्यालंकार ने अपनी पुस्तक ‘जाटों का नया इतिहास’ में इन्हें संजोया है।)

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