क्या आप सेकुलर है ?

मित्रो महाऋषि चाणक्य का एक सूत्र है धर्मस्य मूलम अर्थम् अर्थस्य मूलम कामम !इसका सीधा सा अर्थ है धर्म के मूल मे अर्थ (धन) है ! अर्थात अर्थ कमजोर हुआ तो धर्म अपने आप कमजोर होता है ! अर्थात अर्थव्यवस्था ठीक नहीं है तो धर्म पालन नहीं होता भूखे लोग मंदिर नहीं बनाते और भूखे लोग भजन भी नहीं करते ! पेट भरा हुआ होना चाहिए समृद्धि होनी चाहिए तब मंदिर बनते है तब मठ बनते है तब संस्थाएं बनती है और धार्मिक कार्य होते है ! अतिरिक्त धन अगर आपके पास होगा तब ही गौशालाएँ बनती है मंदिर बनते है जागरण आदि होते है,रथयात्राएं निकलती है, जिनको खुद को खाने के लाले पड़े हो वो बेचारे क्या आर्थिक दान देंगे ? और बिना अर्थ के क्या धर्म टिकेगा ?? तो अर्थ जितना मजबूत होगा धर्म उतना फैलेगा अर्थ जितना कमज़ोर होगा धर्म उतना कमजोर होगा ! भारत जब जब आर्थिक रूप से मजबूत था भारत की धर्म ध्वजा पूरी दुनिया मे फैलती थी भारत जब सोने की चिड़िया था तो भारत का धर्म पूरी दुनिया मे फैला बोध धर्म गया, जैन धर्म गया ,सनातन धर्म गया ! और यही पूरी दुनिया मे देखा जाता है जिन देशो की अर्थव्यवस्था कमजोर है उनका धर्म भी कमजोर होता...